उठ कर तिरे दर से कहीं जाने के नहीं हम मोहताज किसी और ठिकाने के नहीं हम ठहरा है अयादत पे सफ़र मुल्क-ए-अदम का आने के नहीं आप तो जाने के नहीं हम जो तुम ने लगाई है वो है क़द्र के क़ाबिल इस आग को अश्कों से बुझाने के नहीं हम लो आओ सुनो हम से ग़म-ए-हिज्र की हालत गुज़री है जो हम पर वो छुपाने के नहीं हम अहवाल-ए-शब-ए-ग़म पे 'रशीद' आज वो बोले क़ाइल तिरे इस झूटे फ़साने के नहीं हम