कितना बा-ज़र्फ़ है वो मेरे बराबर वाला ख़ुश्क आँखों को दिया ग़म तो समुंदर वाला बाग़बानी में तमाम उम्र गँवा दी लेकिन फूल अब तक न खिला अपने मुक़द्दर वाला ख़्वाब की वहशतें क़ाएम रहीं शब भर मुझ पर दर पे देता ही रहा दस्तकें बाहर वाला हिज्र आसेब है आसेब भी ऐसा साहब हौसला हार गया मैं भी सिकंदर वाला हम मनाएँगे नया साल तिरी याद के साथ ज़ख़्म इस बार हरा होगा दिसम्बर वाला क़हक़हों से तो ज़माना हुआ महरूम हैं लब और फ़साने में मिरा रोल है जोकर वाला तोड़े जाएँगे सितम तेरे तुझी पर 'आफ़ाक़' इक तमाशा तो अभी और है महशर वाला