सियाही ढल के पलकों पर भी आए कोई लम्हा धनक बन कर भी आए गुलाबी सीढ़ियों से चाँद उतरे ख़िराम-ए-नाज़ का मंज़र भी आए लहू रिश्तों का अब जमने लगा है कोई सैलाब मेरे घर भी आए मैं अपनी फ़िक्र का कोह-ए-निदा हूँ कोई हातिम मिरे अंदर भी आए मैं अपने आप का क़ातिल हूँ 'अजमल' मिरा आसेब अब बाहर भी आए