कितना हसीन था तू कभी कुछ ख़याल कर अब और अपने आप को मत पाएमाल कर मरने के डर से और कहाँ तक जियेगा तू जीने के दिन तमाम हुए इंतिक़ाल कर इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं इक दर्द रह गया है सो रखना सँभाल कर देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था ख़ुश थे तमाम नेकियाँ दरिया में डाल कर ख़्वाजा के दर से कोई भी ख़ाली नहीं गया आया है इतने दूर तो 'अल्वी' सवाल कर