जल्वा-सामाँ है रंग-ओ-बू हम से इस चमन की है आबरू हम से दर्स लेते हैं ख़ुश-ख़िरामी का मौज-ए-दरिया-ओ-आब-जू हम से हर सहर बारगाह-ए-शबनम में फूल मिलते हैं बा-वज़ू हम से हम से रौशन है कार-गाह-ए-सुख़न नफ़स-ए-गुल है मुश्कबू हम से शब की तन्हाइयों में पिछले पहर चाँद करता है गुफ़्तुगू हम से शहर में अब हमारे चर्चे हैं जगमगाते हैं काख़-ओ-कू हम से