कितने अरमाँ पिघल के आते हैं लोग चेहरे बदल के आते हैं अब मिरे दोस्त भी रक़ीबों से जब भी आते सँभल के आते हैं जब कोई ताज़ा चोट लगती है मेरे आँसू मचल के आते हैं आज-कल रात और दिन मेरे तेरी यादों में ढल के आते हैं दिल में जब टीस उठती है कोई चंद मिसरे ग़ज़ल के आते हैं मुद्दतों इंतिज़ार था जिन का मेरी मय्यत पे चल के आते हैं