कितने बा-होश हो गए हम लोग ख़ुद-फ़रामोश हो गए हम लोग जिस ने चाहा हमें अज़िय्यत दी और ख़ामोश हो गए हम लोग दिल की आवाज़ भी नहीं सुनते क्या गिराँ-गोश हो गए हम लोग हम को दुनिया ने पारसा समझा जब ख़ता-कोश हो गए हम लोग पी गए झिड़कियाँ भी साक़ी की क्या बला-नोश हो गए हम लोग इस तरह पी रहे हैं ख़ून अपना जैसे मय-नोश हो गए हम लोग शहर में इस क़दर थे हंगामे घर में रू-पोश हो गए हम लोग कितने चेहरों पे आ गई रंगत जब से ख़ामोश हो गए हम लोग ज़ख़्म पाए हैं इस क़दर 'एजाज़' आज गुल-पोश हो गए हम लोग