किया है दीं-दार उस सनम को हज़ारों तूफ़ाँ उठा-उठा कर लगाईं वो तोहमतें कि बोला ख़ुदा-ख़ुदा कर ख़ुदा-ख़ुदा कर तिरी मोहब्बत ने मार डाला हज़ार ईज़ा से मुझ को ज़ालिम रुला-रुला कर घुला-घुला कर जला-जला कर मिटा-मिटा कर शराब-ख़ाना है ये तो ज़ाहिद तिलिस्म-ख़ाना नहीं जो टूटे कि तौबा करते गई है तौबा अभी यहाँ से शिकस्त पा कर निगह को बेबाकियाँ सिखाओ हिजाब-ए-शर्म-ओ-हया उठाओ भुला के मारा तो ख़ाक मारा लगाओ चोटें जता-जता कर न हर बशर का जमाल ऐसा न हर फ़रिश्ते का हाल ऐसा कुछ और से और हो गया तू मिरी नज़र में समा-समा कर इलाही क़ासिद की ख़ैर गुज़रे कि आज कूचे से फ़ित्ना-गर के सबा निकलती है लड़खड़ा कर नसीम चलती है थरथरा कर जनाब-ए-सुल्तान-ए-इश्क़ वो है करे जो ऐ 'दाग़' इक इशारा फ़रिश्ते हाज़िर हों दस्त-बस्ता अदब से गर्दन झुका झुका कर