किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह वो आश्ना भी मिला हम से अजनबी की तरह किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह बढ़ा के प्यास मिरी उस ने हाथ छोड़ दिया वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह कभी न सोचा था हम ने 'क़तील' उस के लिए करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह