किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता कि आतिश गुल कूँ करती है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता वफ़ादारी ने दिलबर की बुझाया आतिश-ए-ग़म कूँ कि गर्मी दफ़ा करता है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता अजब कुछ लुत्फ़ रखता है शब-ए-ख़ल्वत में गुल-रू सूँ ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता मिरे दिल कूँ किया बे-ख़ुद तिरी अँखियाँ ने आख़िर कूँ कि ज्यूँ बेहोश करती है शराब आहिस्ता आहिस्ता हुआ तुझ इश्क़ सूँ ऐ आतिशीं-रू दिल मिरा पानी कि ज्यूँ गलता है आतिश सूँ गुलाब आहिस्ता आहिस्ता अदा ओ नाज़ सूँ आता है वो रौशन-जबीं घर सूँ कि ज्यूँ मशरिक़ सूँ निकले आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता 'वली' मुझ दिल में आता है ख़याल-ए-यार-ए-बे-परवा कि ज्यूँ अँखियाँ मनीं आता है ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता