किए जाता जो वो जौर-ओ-जफ़ा है जफ़ा की भी कुछ आख़िर इंतिहा है उसी ने दे के दम दिल ले लिया है क़ुसूर इस में बताओ मेरा क्या है फ़क़ीरों का पता क्या पूछते हो जहाँ ठहरे वही रहने की जा है ज़रा देखो तो चश्म-ए-ग़ौर से तुम यही आईना-ए-दिल हक़-नुमा है हुए दाग़-ए-जुनूँ ताज़ा हमारे बहार आई चमन फूला-फला है तिरी ख़ाक-ए-क़दम ऐ रश्क ऐसी मरीज़-ए-हिज्र को ख़ाक-ए-शिफ़ा है है ये दौर-ए-शबाब ऐ साक़ी-ए-दह्र पिला दे मय उठी काली घटा है नहीं दावा है क़ातिल से कुछ अपना मुझे तो ज़ब्ह 'ख़ंजर' ने किया है