किसी दिन घर मिरे आया तो होता तलत्तुफ़ मुझ पे फ़रमाया तो होता ज़रा ज़ुल्फ़ों को दिखलाया तो होता बला सर पर मिरे लाया तो होता अयादत को अगर आया नहीं वो जनाज़े पर मिरे आया तो होता गुल-ए-ख़ूबी चमन में मुस्कुरा कर ज़रा ग़ुंचे को शरमाया तो होता बुला कर कान की बिजली को अपने कभी बिजली को चमकाया तो होता वफ़ा पर भी जफ़ाएँ कर रहा है अरे ज़ालिम तू पछताया तो होता गुलिस्ताँ में किसी दिन दिल पे बुलबुल मिरे मानिंद गुल खाया तो होता मिरे लाशे को ऐ रश्क-ए-मसीहा ज़रा क़ुम कह के ठुकराया तो होता तिरे ‘ख़ंजर’ से क़ातिल मेरे मानिंद किसी ने सर को कटवाया तो होता