क्यूँ ग़लत रह से बचाया न गया जाने क्यूँ मोड़ के लाया न गया मानने वाला मिरी बातों को जाने क्यूँ मुझ से मनाया न गया सर-फिरी तेज़ हवा के होते दीप उल्फ़त का बुझाया न गया रूह पर सब्त हुआ वो ऐसा फिर कभी मुझ से मिटाया न गया कट गया पेड़ तो आँगन का मगर मेरे सर से कभी साया न गया जब भी 'जाज़िब' वो हुआ हम-आवाज़ गीत मुझ से कोई गाया न गया