कोई ज़ौक़-ए-नज़र होने लगा है बहुत आसाँ सफ़र होने लगा है कहाँ से लाओगे तुम माँ की ममता अगर परदेस घर होने लगा है सँभालो अब तो इस बीमार को तुम फ़साना मुख़्तसर होने लगा है मिरे अल्फ़ाज़ ज़ौ देने लगे हैं ग़ज़ल कहना हुनर होने लगा है वो पहले टस-से-मस होता नहीं था अगर से अब मगर होने लगा है लबों पर अब है उस के मुस्कुराहट दुआओं का असर होने लगा है चलो 'जाज़िब' बचा कर अपना दामन वो रस्ता रहगुज़र होने लगा है