कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी ज़िंदगी ये राह पर आई न थी आप की बातें थीं बातें ही फ़क़त आप की बातों में गहराई न थी हर क़दम पर रंज-ओ-ग़म थे मुंतज़िर किस जगह मेरी पज़ीराई न थी ज़िंदगी थी इक सुकूत-ए-मुस्तक़िल मुश्किलों से जब शनासाई न थी आप की यादें थीं दिल के आस पास ज़िंदगी में कोई तन्हाई न थी एक भी पूरी न हो पाई 'करन' कौन सी उस ने क़सम खाई न थी