कू-ए-हरम से निकली है कू-ए-बुताँ की राह हाए कहाँ पे आ के मिली है कहाँ की राह सद-आसमाँ ब-दामन ओ सद-कहकशाँ-ब-दोश बाम-ए-बुलंद-ए-यार तिरे आस्ताँ की राह मुल्क-ए-अदम में क़ाफ़िला-ए-रूह जा बसा हम देखते ही रह गए उस बद-गुमाँ की राह लुटता रहा है ज़ौक़-ए-नज़र गाम गाम पर अब क्या रहा है पास जो हम लें वहाँ की राह ऐ ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म तुझे अपना ही वास्ता हमवार होने पाए न उम्र-ए-रवाँ की राह गुल-हा-ए-रंग-रंग हैं अफ़्कार-ए-नौ-ब-नौ ये रहगुज़ार-ए-शेर है किस गुल्सिताँ की राह 'ताहिर' ये मंज़िलें ये मक़ामात ये हरम अल्लाह रे ये राह ये कू-ए-बुताँ की राह