कोहसार के दामन में हवा तेज़ बहुत है पर ये कि मिरा दोस्त कम-आमेज़ बहुत है इतना न हुए होते हम अफ़्सुर्दा वतन में हिजरत में तिरी याद ग़म-अंगेज़ बहुत है हुस्न आता है अश्या में मौक़ा से महल से हर मार-ए-सियह-ज़ुल्फ़ दिल-आवेज़ बहुत है बरसात के मौसम में करे नाला न कोई बारिश से यहाँ सैल-ए-रवाँ तेज़ बहुत है जो नूर है चेहरे पे इबादत के एवज़ है 'आबिद' का तो इन अश्या से परहेज़ बहुत है