जाम तो जाम मय-ए-होश-रुबा भी बदली साथ ही रिंदों के पीने की अदा भी बदली फ़स्ल-ए-गुल बदली सबा बदली फ़ज़ा भी बदली आप बदले तो गुलिस्ताँ की हवा भी बदली टूट जाएगा यक़ीनन दिल-ए-मय-ख्वार अगर निगह-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ज़रा भी बदली बज़्म-ए-याराँ में सदा से मुझे पहचानता कौन मेरे हालात जो बदले तो सदा भी बदली आज तक उस ने तो वा'दा कोई ईफ़ा न किया जाने क्या सोच के फिर शर्त-ए-वफ़ा भी बदली होने लगता है कुछ एहसास शिकस्त-ए-तौबा बादा-ख़ाने पे अगर छाई ज़रा भी बदली वक़्त के साथ बदल जाती है हर शय 'आजिज़' आप तो बदले मगर ख़ू-ए-जफ़ा भी बदली