कोई आस-पास नहीं रहा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया मुझे अपना हाथ भी छू गया तो ख़याल तेरी तरफ़ गया कोई आ के जैसे चला गया कोई जा के जैसे गया नहीं मुझे अपना घर कभी घर लगा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया मिरी बे-कली थी शगुफ़्तगी सो बहार मुझ से लिपट गई कहा वहम ने कि ये कौन था तो ख़याल तेरी तरफ़ गया मुझे कब किसी की उमंग थी मिरी अपने आप से जंग थी हुआ जब शिकस्त का सामना तो ख़याल तेरी तरफ़ गया किसी हादसे की ख़बर हुई तो फ़ज़ा की साँस उखड़ गई कोई इत्तिफ़ाक़ से बच गया तो ख़याल तेरी तरफ़ गया तिरे हिज्र में ख़ुर-ओ-ख़्वाब का कई दिन से है यही सिलसिला कोई लुक़्मा हाथ से गिर पड़ा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया मिरे इख़्तियार की शिद्दतें मिरी दस्तरस से निकल गईं कभी तू भी सामने आ गया तो ख़याल तेरी तरफ़ गया