रंग मौसम के साथ लाए हैं ये परिंदे कहाँ से आए हैं बैठ जाते हैं राह-रौ थक कर कितने हिम्मत-शिकन ये साए हैं धूप अपनी ज़मीन है अपनी पेड़ अपने नहीं पराए हैं अपने अहबाब की ख़ुशी के लिए बिला-इरादा भी मुस्कुराए हैं दुश्मनों को क़रीब से देखा दोस्तों के फ़रेब खाए हैं हम ने तोड़ा है ज़ुल्मतों का फ़ुसूँ रौशनी के भी तीर खाए हैं देख ले मुड़ कर महव-ए-आराइश आईना बन के हम भी आए हैं पै-ब-पै राह की शिकस्तों ने हौसले और भी बढ़ाए हैं ज़िंदगी है उसी का नाम 'एजाज़' हैं वो अपने जो ग़म पराए हैं