कोई अज्दाद के ख़ज़ाने थे दर्द कुछ इस क़दर पुराने थे न निगाहें चुराओ खंडर से ये तो आबाद आशियाने थे सिर्फ़ इज़हार ही नहीं काफ़ी आप को नाज़ भी उठाने थे वज्ह इंकार की मिरे तो बस यूँ समझ लीजिए बहाने थे बे-सहारा हैं और बे-घर भी रिश्ते-नातों में जो सियाने थे बा'द मुद्दत के ख़ूब सोई मैं मेरा सर और उन के शाने थे उन निगाहों के वार सह न सके तेग़ के वार जो दिखाने थे