कोई बहार की ख़ातिर कोई ख़िज़ाँ के लिए बस एक मैं ही रहा सिर्फ़ गुल्सिताँ के लिए इलाही मुझ से नज़र छीन ले कि अहल-ए-नज़र तमाम-उम्र तड़पते हैं राज़-दाँ के लिए मसर्रतें जो मिलीं तेरे लुत्फ़-ए-पैहम से मचल रही हैं किसी जौर-ए-ना-गहाँ के लिए मुझे हैं ख़ार से कुछ ख़ास निस्बतें कि ये गुल बहार में न खिला रौनक़-ए-ख़िज़ाँ के लिए हमें उन अहल-ए-सुख़न में न कर शुमार कि ये फ़ुग़ाँ भी करते हैं ख़ुश-वक़्ती-ए-फ़ुग़ाँ के लिए करें न ज़िक्र तुम्हारा तो क्या करें कि हमें कुछ और मिल न सका अपनी दास्ताँ के लिए हमारे देस में ईरान-ओ-नज्द से उस्ताद बुलाए जाते हैं ता'लीम-ए-आशिक़ाँ के लिए हमारे शहर में फ़न के इजारा-दारों ने कुचल रखा है दिलों को फ़क़त ज़बाँ के लिए हम अपने देस और अपने ही शहर में 'आली' गदा-गरी पे हैं मजबूर सोज़-ए-जाँ के लिए