कोई बस्ती नई हम तुम कहीं आबाद करते हैं चलो आओ कोई रस्ता नया ईजाद करते हैं समुंदर हो कि सहरा हो गुल-ओ-गुलज़ार हो चाहे ये हम ही लोग हैं जो हर नगर आबाद करते हैं यही ख़्वाहिश तुम्हारी है कि तुम हम से बिछड़ जाओ तो फिर जाओ अभी से हम तुम्हें आज़ाद करते हैं हमें तो आरज़ू ये थी क़फ़स को तोड़ डालो तुम मगर तुम ने किया वो ही जो सब सय्याद करते हैं मिरे हर लफ़्ज़ में यारब बयाँ हो हक़ फ़क़त सच हो अता दी है क़लम की तो ये भी फ़रियाद करते हैं मोहब्बत में जो हारे हो तो बेहतर है पलट जाओ दर-ओ-दीवार-ए-संग-ओ-बाम सब ही याद करते हैं