कुछ तो हमारे दरमियाँ है दिल-लगी अभी तेरी निगाह-ए-नाज़ में है तिश्नगी अभी ख़ामोशियाँ अजीब हैं इस सर्द शहर की बर्फ़ीली इस हवा में है दीवानगी अभी सौग़ात मिल रही है तिरी याद की मुझे इस हिज्र ने सिखाई बहुत शाइ'री अभी वो बीत ही गई जो अमावस की रात थी फैली है मेरे चारों तरफ़ चाँदनी अभी जाने वो कौन लोग थे जो कर गए वफ़ा तुम से तो हो सकी न ज़रा दिलबरी अभी अब भी 'हिना' सहेगा न-जाने वो कितने ग़म क़िस्मत में उस की है लिखी ये बे-घरी अभी