कोई भी ख़ुश नहीं है इस ख़बर से कि दुनिया जल्द लौटेगी सफ़र से मैं सहरा में सफ़ीना देखता हूँ समुंदर कोई गुज़रा है इधर से सँभालो अपना हर्फ़-ए-दाद-ओ-तहसीं मैं कब हूँ मुतमइन अर्ज़-ए-हुनर से ख़ता है ये जवाज़ अपनी ख़ता का ख़ताएँ होती रहती हैं बशर से सभों में ख़ामियाँ ही देखता है वो है महरूम क्या हुस्न-ए-नज़र से ग़ज़ब का आएगा सैलाब यारो कि गुज़रा है बहुत सा पानी सर से बुलंदी इतनी भी अच्छी नहीं है उतारो अब 'अता' को दार पर से