कोई भी नहीं शहर में जब ज़ात के बाहर क्यूँ भीड़ ये रहती है मकानात के बाहर हैरानी-ओ-मदहोशी-ओ-तसकीन-ओ-मुसर्रत कुछ भी तो नहीं क़स्र-ए-तिलिस्मात के बाहर हर-वक़्त की ये ख़्वाब की आदत नहीं अच्छी दीदार को रानाई दे ज़ुल्मात के बाहर आज़ाद है वो नफ़्स की तहवील में 'राहत' और हम हैं गिरफ़्तार हवालात के बाहर