कोई चेहरा निगाहों में नहीं है कहूँ कैसे वो आहों में नहीं है मिरी क़िस्मत में ये कैसा सफ़र है कोई साया भी राहों में नहीं है अगर किरदार अब तक है सलामत कशिश क्यों ख़ानक़ाहों में नहीं है ग़रीबों को सर आँखों पे बिठाएँ ये जज़्बा आली-जाहों में नहीं है 'असर' तुम बात जिस की कर रहे हो तुम्हारे ख़ैर-ख़्वाहों में नहीं है