कोई दौलत का पुजारी हो कोई तदबीर का वार चल जाता है हर इक शख़्स पर तक़दीर का इक नया ग़म रोज़ मिलता है पुराने ग़म के साथ सिलसिला टूटेगा कब इस दर्द की ज़ंजीर का साज़िशों के जाल ही फैले हैं हर इक राह में प्यार का राँझा भी ख़ुद मुजरिम है अपनी हीर का धीरे धीरे ज़ख़्म पर अंगूर आ ही जाएगा चुप ही रहना चाहिए क्या फ़ाएदा तश्हीर का सुर्ख़ आँचल में दहकते फूल की सूरत 'सुहैल' अब तलक आँखों में नक़्शा है उसी तस्वीर का