कोई दिन का आब-ओ-दाना और है फिर चमन और आशियाना और है हाँ दिल-ए-बे-ताब चंदे इंतिज़ार अम्न-ओ-राहत का ठिकाना और है शम्अ' फीकी रात कम महफ़िल उदास अब मुग़न्नी का तराना और है ऐ जवानी तू कहानी हो गई हम नहीं वो या ज़माना और है जिस को जान-ए-ज़िंदगानी कह सकें वो हयात-ए-जावेदाना और है जिस को सुन कर ज़ोहरा-ए-संग आब हो आह वो ग़मगीं फ़साना और है वा अगर समा-ए-रज़ा हो तो कहूँ एक पंद-ए-मुश्फ़िक़ाना और है इत्तिफ़ाक़ी है यहाँ का इर्तिबात सब हैं बेगाने यगाना और है