किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ शम्अ' क्यूँ अपनी जलन में घुल गई मुंतशिर क्यूँ हो गए औराक़-ए-गुल चीख़ती गुलशन से क्यूँ बुलबुल गई आबदीदा हो के शबनम क्यूँ चली दम के दम काँटों में आ कर तुल गई सब्ज़ा-ए-तर्फ-ए-ख़याबाँ क्या हुआ आह क्यूँ शादाबी-ए-सुम्बुल गई कुछ न था ख़्वाब-ए-परेशाँ के सिवा इस थिएटर की हक़ीक़त खुल गई राह के रंज-ओ-तअब का क्या गिला जब कि दिल से गर्द-ए-कुल्फ़त धुल गई