कोई इल्ज़ाम न दुनिया में किसी पर रखना दिल लहू हो भी तो चेहरे को गुल-ए-तर रखना ख़ाक का हो कि हो काँटों का वो बिस्तर ऐ दोस्त नींद आ जाएगी तकिया तू ख़ुदा पर रखना क्या ख़बर राह में कब साथ ख़ुशी का छूटे ज़िंदगी ग़म को भी साथ अपने बराबर रखना देख आँखों की ज़मीं है न लरज़ जाए कहीं ऐ तसव्वुर तू यहाँ पाँव सँभल कर रखना ज़ानू-ए-यार समझ कर उसे सो जाएँगे हम ग़रीबों के सिरहाने ज़रा पत्थर रखना चाहता है ये मिरे दौर का दस्तूर 'नसीब' तिश्नगी दिल में तो आँखों में समुंदर रखना