कोई इस ख़्वाब की ता'बीर तो बतलाए मुझे मैं हूँ सहरा में मगर दरिया नज़र आए मुझे मेरे अंदर के इक एहसास ने दी है ये सदा तू अगर ख़ुद को मिटा ले कभी पा जाए मुझे रात के पिछले पहर तक मैं फिरूँ नश्शे में और कोई शोख़ हसीना मिरे घर लाए मुझे तू ने ऐ मुंबई जो कुछ भी दिया है मुझ को वो मिरा शहर तो सदियों भी न दे पाए मुझे मैं तुम्हारी ही तरह बज़्म में छा जाऊँ मगर झूट कहने का सलीक़ा भी तो आ जाए मुझे