कुछ नहीं तेरे सिवा सोचते हैं तुझ को ही बहर-ए-ख़ुदा सोचते हैं देख कर चाँद सितारों की रविश हम तिरे घर का पता सोचते हैं छोड़िए इश्क़ का फ़र्सूदा ख़याल आईये कुछ तो नया सोचते हैं तेरे बिन कैसे गुज़रती ये हयात जाँ ही निकले जो ज़रा सोचते हैं हम जो बोएँगे वही काटेंगे फिर भी औरों का बुरा सोचते हैं टूट कर फिर नहीं जुड़ता है दिल ये कहाँ अहल-ए-जफ़ा सोचते हैं तुम कि अपनों से अदावत है तुम्हें हम कि ग़ैरों का भला सोचते हैं