कोई जहाँ में साहब-ए-ईमाँ न बन सका तुफ़ है कि इश्क़ मज़हब-ए-इंसाँ न बन सका ता-उम्र तिफ़्ल-ए-दिल पे यतीमी का कर्ब था कोशिश तो की मगर मैं कभी माँ न बन सका या'नी जुनूँ के बाब में भी इंतिख़ाब था जो बहर बन गया वो बयाबाँ न बन सका शहर-ए-ख़िरद के बाब हक़ीक़त का हर ख़याल दश्त-ए-गुमाँ की राह का इम्काँ न बन सका ये ख़ार-ज़ार सब का गुलिस्ताँ तो बन गया ये ख़ार-ज़ार मेरा गुलिस्ताँ न बन सका