कोई मलाल हूँ दुख हूँ बताओ क्या हूँ मैं दिनों के बा'द किसी शख़्स को दिखा हूँ मैं ये कौन पालता फिरता है हिज्र का आसेब मुझे बताया गया था कि मर चुका हूँ मैं जिगर के हाथ लपकते हैं आँख की जानिब कुछ ऐसी तर्ज़ से गिर्या-कुनाँ हुआ हूँ मैं कभी कभी मिरी आँखें जवाब देती हैं कभी कभी तुझे इतना सवालता हूँ मैं किसी के अश्क मिरे गाल छू के गिरते थे किसी के क़ुर्ब में इतना भी रह चुका हूँ मैं तुम्हारा हिज्र मिरे साथ रहना चाहता है उसे बताओ कि इस से बहुत बड़ा हूँ मैं बहिश्त फेंक चुकी है ज़मीन पर मुझ को ख़ुदा का शुक्र तुझे रास आ गया हूँ मैं