कोई नहीं है कुश्ता-ए-बे-दिल के आस-पास फिरती है बे-कसी तिरे बिस्मिल के आस-पास रहती थीं पहले हसरतें जो दिल के आस-पास दम तोड़ती हैं अब वही बिस्मिल के आस-पास लैला को कुछ पयाम सुनाना है क़ैस का बाद-ए-सबा है पर्दा-ए-महमिल के आस-पास है हुक्म-ए-यास शादी-ए-उम्मीद के लिए हरगिज़ फटकने पाए न ये दिल के आस-पास फंदे लगाते फिरते हैं सय्याद बाग़ में शाख़ों पर आशियान-ए-‘अनादिल के आस-पास अरमानों का है वस्ल में ताँता बँधा हुआ कुछ दूर-दूर हैं अभी कुछ दिल के आस-पास ‘उश्शाक़ क़त्ल हो गए सब क़त्ल-गाह में बाक़ी नहीं रहा कोई क़ातिल के आस-पास क्या बे-हिजाब क़ैस से लैला हो नज्द में पर्दे पड़े हैं शर्म के महमिल के आस-पास है याद-ए-चश्म-ए-यार में मिज़्गाँ की भी ख़लिश कुछ ख़ार भी हैं आइना-ए-दिल के आस-पास यूँ मेरे गिर्द कोहकन-ओ-क़ैस हैं 'शहीर' जैसे मुरीद मुर्शिद-ए-कामिल के आस-पास