कुफ़्र-ओ-ईमाँ दोनों से ता-वक़्त-ए-आख़िर काम था दिल में थी याद-ए-बुताँ लब पर ख़ुदा का नाम था जिस का मिटना ग़ैर मुमकिन जिस का सुनना ना-गुज़ीर वो अजल का वक़्त था वो मौत का पैग़ाम था बे-ख़ुदी में होते क्या इस्म-ओ-मुसम्मा आश्ना नाम से बेगाना मैं बेगाना मुझ से नाम था ले ही ली सब्र-आज़माओं से शकेबाई की दाद ऐ कमाल-ए-सब्र क्या कहना ये तेरा काम था हो गई थीं जम्अ दुनिया भर की आख़िर हसरतें इक जहान-ए-आरज़ू मेरा दिल-ए-नाकाम था अर्ज़-ए-मतलब के लिए ख़ुद थी मिरी सूरत सवाल आप ही पैग़ाम्बर था आप ही पैग़ाम था