कोई परवाह नहीं है कि वो सर काटेंगे हम मोहब्बत से ही नफ़रत का असर काटेंगे अज़्म-ए-फ़रहाद ने औज़ार से काटा था पहाड़ हम रग-ए-गुल से भी पत्थर का जिगर काटेंगे लोग एहसान को एहसान समझते कब हैं जिस के साए में पलेंगे वो शजर काटेंगे फिर तिरे आने की उम्मीद-ए-सुब्ह जागेगी फिर तिरी याद में हम आठ पहर काटेंगे आप ने उड़ना कभी जिस को सिखाया 'इमरान' लिख रखें ये कि वही आप के पर काटेंगे