तलाश-ए-रिज़्क़ में जिस ने ज़रा अच्छा बुरा समझा तो फिर उस ने हक़ीक़त में ख़ुदा को भी ख़ुदा समझा वो ख़ल्वत में वो जल्वत में कहाँ उस से छुपेगा तू अगर तू ये नहीं समझा बता दे फिर कि क्या समझा हमारा ख़ून शामिल है वतन के ज़र्रे ज़र्रे में मगर अफ़्सोस कि अहल-ए-वतन ने बेवफ़ा समझा बयान-ए-हुस्न शाइ'र के तख़य्युल का करिश्मा है कभी ज़ुल्फ़ों को वो नागिन कभी काली घटा समझा गँवा दी जान 'इमरां' ने है जिस की जान की ख़ातिर वो उस की मौत को फिर भी फ़क़त इक हादिसा समझा