कोई साग़र दिल को बहलाता नहीं By फ़िल्मी शेर, Ghazal << मिली ख़ाक में मोहब्बत जला... कुछ और ज़माना कहता है कुछ... >> कोई साग़र दिल को बहलाता नहीं बे-ख़ुदी में भी क़रार आता नहीं मैं कोई पत्थर नहीं इंसान हूँ कैसे कह दूँ ग़म से घबराता नहीं कल तो सब थे कारवाँ के साथ साथ आज कोई राह दिखलाता नहीं ज़िंदगी के आइने को तोड़ दो इस में अब कुछ भी नज़र आता नहीं Share on: