कोई सवाल न कर और कोई जवाब न पूछ तू मुझ से अहद-ए-गुज़शता का अब हिसाब न पूछ सफ़ीने कितने हुए इस में ग़र्क़-ए-आब न पूछ तू मेरे दिल के समुंदर का इज़्तिराब न पूछ मैं कब से नींद का मारा हुआ हूँ और कब से ये मेरी जागती आँखें हैं महव-ए-ख़्वाब न पूछ सफ़र में धूप की शिद्दत ने भी सताया मगर फ़रेब देते रहे किस क़दर सराब न पूछ कभी उरूज पे था ख़ुद पे ए'तिमाद मिरा ग़ुरूब कैसे हुआ है ये आफ़्ताब न पूछ