कोई सितारा-ए-शब या ग़ुबार था वो भी ज़मीं पे नाज़-ए-फ़लक का शुमार था वो भी मैं रेज़ा रेज़ा ज़मीं पर मगर वरा-ए-ज़मीं नुमूद-ए-पैरहन-ए-तार-तार था वो भी सिनाँ-ब-दस्त जो आया वो दस्ता-ए-गुल था जो लाला-रू था सो अम्बोह-ए-ख़ार था वो भी वो पड़ गया था मगर रंज-ए-ना-गहानी में गिरह-कुशा गिला-ए-साज़-गार था वो भी उसी से ख़ाक में रा'नाई-ए-तजम्मुल है ज़मीं पे झुकता हुआ कोहसार था वो भी किसी पे जम गई चश्म-ए-गुरेज़-पा आख़िर अजीब लम्हा-ए-बे-इख़्तियार था वो भी