कोई तारा कहीं महताब से मिलता-जुलता यही मंज़र है मिरे ख़्वाब से मिलता-जुलता घर मुज़य्यन है तो फिर सहन भी ख़ाली क्यूँ हो क्यूँ नहीं अपने में अहबाब से मिलता-जुलता रौ मैं बहता हूँ तो होती है रगों में हलचल जाने क्या मुझ में है सैलाब से मिलता-जुलता क़तरा-ए-सुर्ख़ में जब ख़ून की तासीर नहीं क्या है फिर जिस्म में तेज़ाब से मिलता-जुलता आसमाँ मुझ से छुपाता है कोई सच्चाई या कोई वहम है इस ख़्वाब से मिलता-जुलता किस हक़ीक़त को छुपाती हैं निगाहें 'राहत' रेत है या कि सराब आब से मिलता-जुलता