सहन-ए-एहसास में इक नक़्श निहाँ था पहले तू नहीं था तिरे होने का गुमाँ था पहले तह-ब-तह चार सू ख़ुश-रंग सदा रौशन थी मुझ से पहले भी कोई जैसे यहाँ था पहले वो भी सहरा की सदाओं में गिरफ़्तार रहा और मुझ में भी कोई रेग-ए-रवाँ था पहले वक़्त ने कर दिया पत्थर की लहद में तब्दील अपना छोटा सा जो मिट्टी का मकाँ था पहले अब तो आईना-ए-एहसास है बे-अक्स-ए-जमाल मुझ से छुप कर भी कोई मुझ पे अयाँ था पहले वो नहीं था तो न था उस की ज़रूरत क्या थी अपने होने का भी एहसास कहाँ था पहले रोज़-ओ-शब सहते रहे टूटते लम्हों का इताब कोई ख़ंजर सा क़रीब-ए-रग-ए-जाँ था पहले आप की हम-सफ़री ने सफ़र आसान किया वर्ना हर गाम यहाँ कोह-ए-गिराँ था पहले ख़ुश-बयानी ने किसी की मुझे ख़ुश-रंग किया अपना कुछ और ही अंदाज़-ए-बयाँ था पहले उन से मिलते ही हर इक ग़म से मिली 'नाज़' नजात ज़िंदगी का ये हसीं चेहरा कहाँ था पहले