कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है जैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है तिरी याद आती है अब कोई कहानी बन कर या किसी नज़्म के साँचे में ढली आती है अब भी पहले की तरह पेश-रव-ए-रंग-ओ-सदा एक मुँह-बंद सी बे-रंग कली आती है चल के देखें तो सही कौन है ये दुख़्तर-ए-रज़ रोज़-ए-अव्वल से जो बद-नाम चली आती है ये मिरे कर्ब का आलम रहे यारब आबाद इस ज़मीं से बू-ए-औलाद-ए-'अली' आती है