कोई उस को सदा नहीं देता क्यों वो अपना पता नहीं देता सुन सको तो सदा-ए-दिल सुन लो साज़-ए-उल्फ़त सदा नहीं देता दिल में अरमाँ रहें न हसरत-ओ-ग़म ऐसी कोई दुआ नहीं देता धुँदला धुँदला है आइना दिल का कोई उस को जिला नहीं देता है किसे अब मजाल-ए-दीद यहाँ क्यों वो पर्दा उठा नहीं देता कोई ग़म-ख़्वार इस ज़माने में ज़िंदगी की दुआ नहीं देता कैसा 'अख़्तर'-शनास है ऐ दिल क्यों सहर का पता नहीं देता