कोई ज़र्रा जो दिल की ख़ाक का बर्बाद होता है जहान-ए-इश्क़ में शोर-ए-मुबारकबाद होता है न पूछो क्या सुरूर-ए-लज़्ज़त-ए-बेदाद होता है जब आग़ोश-ए-मोहब्बत में दिल-ए-नाशाद होता है ख़ुदा जाने ये क्या दाम-ए-बला है गुलशन-ए-हस्ती जिधर परवाज़ करता हूँ उधर सय्याद होता है ये दर्स-ए-इश्क़ भी कैसा अनोखा दरस है या-रब कि जितना भूलता जाता हूँ उतना याद होता है जो तेरी याद में गिरता है बन कर गौहर-ए-मक़्सद वही अश्क-ए-मोहब्बत हासिल-ए-रूदाद होता है कोई शोरीदा-सर पाबंद-ए-ज़िंदाँ हो नहीं सकता बगूला अपनी ज़ंजीरों में भी आज़ाद होता है जो 'वहशी' की तरह होता है पाबंद-ए-ग़म-ए-जानाँ वही तो बस ग़म-ए-दौराँ से भी आज़ाद होता है