कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे फिर तिरे हाथ से हर चाक सिलाना है मुझे बाँध रक्खे हैं मिरे पाँव में घुँगरू किस ने अपनी सुर-ताल पे अब किस ने नचाना है मुझे रात-भर देखता आया हूँ चराग़ों का धुआँ सुब्ह-ए-आशूर से अब आँख मिलाना है मुझे हाथ उट्ठे न कोई अब के दुआ की ख़ातिर एक दीवार पस-ए-दार बनाना है मुझे सर बचे या न बचे तेरे ज़ियाँ-ख़ाने में अपनी दस्तार बहर-तौर बचाना है मुझे छोड़ आया हूँ दर-ए-दिल पे मैं आँखें अपनी अब ज़रा जाए जो कहता था कि जाना है मुझे