कृष्ण को चाहता हूँ आशिक़-ए-सुब्हाँ हूँ मैं सब मुझे कहते हैं हिन्दू वो मुसलमाँ हूँ मैं राम भी कृष्ण भी अहमद भी गुरूनानक भी दिल से इन चारों बुज़ुर्गों का सना-ख़्वाँ हूँ मैं लब पे हर-हर है मिरे दिल में है अल्लाह अल्लाह वेद पढ़ लेता हूँ और हाफ़िज़-ए-क़ुरआँ हूँ मैं मेरा मज़हब है यही सब को समझना अपना सब से मिलता हुआ रहता हूँ वो इंसाँ हूँ मैं चार दिन जीना है मिल-जुल के बसर हो 'असग़र' अब तो इस जग में कोई रोज़ का मेहमाँ हूँ मैं