किसी के दर्द से वो आश्ना होता तो क्या होता किसी के दिल में गर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा होता तो क्या होता ख़ुशी रह कर सदा मुझ से वो हुक्म-ए-क़त्ल देता है ख़ुदा जाने अगर वो बुत ख़फ़ा होता तो क्या होता अभी बंदा है वो इस पर भी इतनी ज़ुल्म-रानी है ख़ुदावंदा अगर बंदा ख़ुदा होता तो क्या होता मुझे कुछ मौत की परवा नहीं ऐ दावर-ए-महशर यतीमों का भी कोई आसरा होता तो क्या होता अभी मेहंदी लगाई थी अभी ख़ूँ कर दिया मेरा अगर रंग-ए-हिना 'असग़र' चढ़ा होता तो क्या होता